भारत सरकार ने संस्कृत आयोग (1956-1957) की अनुशंसा के आधार पर संस्कृत के विकास और प्रचार-प्रसार हेतु तथा संस्कृत से सम्बद्ध केन्द्र सरकार की नीतियों एवं कार्यक्रमों के क्रियान्वयन के उद्देश्य से 15 अक्टूबर, 1970 को एक स्वायत्त संगठन के रूप में राष्ट्रिय संस्कृत संस्थान की स्थापना की थी। उसके सदुद्देश्यों की बहुआयामी उपयोगिता को देखते हुए मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार ने उसे मई 2002 को बहुपरिसरीय मानित विश्वविद्यालय के रूप में घोषित किया है। वर्तमान में इस मानित विश्वविद्यालय के तेरह परिसर देश के विभिन्न प्रदेशों में कार्यरत हैं। उनमें मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल नगर में शिक्षासत्र 2002-2003 से भोपाल परिसर सञ्चालित है।
भोपाल प्राचीनकाल से प्राकृतिक, बौद्धिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक एवं राजनैतिक आदि विभिन्न सम्पदा से सम्पन्न रहा है। अतः यहाँ भोपालपरिसर को स्थापित करने के लिए तात्कालीन केन्द्रीय मन्त्री डा. मुरली मनोहर जोशी, मानव संसाधन विकास मन्त्रालय भारत सरकार ने पत्र क्रमाङ्क संस्कृत-1- सैक्सन दिनाङ्क 31 मार्च 2002 के द्वारा स्थापना आदेशपत्र निर्गत किया था। उक्त शासनादेश को क्रियान्वित करने के लिए रा. सं. सं. नई दिल्ली ने पत्र क्रमाङ्क-37021/2002-admin/1108 कार्यालय आदेश संख्या 107 / दिनाङ्क 05.06.2002 के द्वारा एतदर्थ प्राचार्य आदि विभाग उपलब्ध कराकर 1 जुलाई 2002 से भोपाल परिसर को क्रियाशील किया था। यद्यपि इस तिथि से प्रायः दस वर्ष पूर्व ही 1991-92 में तत्कालीन मानव संसाधन विकास मन्त्री माननीय अर्जुन सिंह जी की घोषणा से भोपाल परिसर के स्थापना की योजना प्रकल्पित हुई थी और उसी समय मध्यप्रदेश शासन ने पत्र क्रमाङ्क -एफ 6730/शास. /सा.-2बी/93 दिनाङ्क 27.05.1993/20.07.1993 के शासनादेश के द्वारा इस परिसर के विकास के लिए 10 एकड़ भूमि निःशुल्क आवंटित की थी। इस प्रकार भोपाल में 6 जुलाई 2002 से बरकतउल्ला विश्वविद्यालय के अतिथि गृह के कक्ष में भोपाल परिसर की गतिविधि प्रारम्भ होने पर 02 अगस्त 2002 को अरेरा कॉलोनी में भाटक भवन प्राप्त करके उसमें छात्रों के प्रवेश एवं शिक्षण की गतिविधि प्रारम्भ हुई।
तत्पश्चात् मध्यप्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल महामहिम भाई महावीर जी ने संस्थान के तत्कालीन कुलपति प्रो. वेम्पटि कुटुम्ब शास्त्री जी और परिसर संस्थापक प्राचार्य प्रो. आजाद मिश्र जी के साथ संस्कृत जगत् के मूर्धन्य विद्वज्जनों की उपस्थिति में दिनाङ्क 16 सितम्बर 2002 को भोपाल परिसर के औपचारिक उद्घाटन की उद्घोषणा की थी। तदनन्तर मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमन्त्री माननीय श्री दिग्विजय सिंह जी ने अपने करकमलों से दिनाङ्क 27.02.2003 को आवंटित भूखण्ड पर परिसराधार शिलान्यास किया था। तत्पश्चात् परिसर के विकास के लिए तत्कालीन मानव संसाधन विकास मन्त्री माननीय अर्जुन सिंह जी के करकमलों से दिनाङ्क 19 सितम्बर 2005 को शैक्षिक एवं प्रशासनिक मुख्य भवन का शिलान्यास सम्पन्न हुआ था।
तदनन्तर माननीय कुलपति प्रो. राधावल्लभ त्रिपाठी जी की उपस्थिति में रामनवमी बुधवार दिनाङ्क 24.03.2010 को निर्मित मुख्यभवन का वत्सराज भवन नामकरण हुआ और उसी दिन से अपने वत्सराज भवन में परिसर की सभी गतिविधियाँ प्रारम्भ हो गयी थी। इस समय वत्सराज मुख्यभवन के अन्तर्गत सभी कक्षाएँ, सभी प्रयोगशालाएँ, अनौपचारिक कक्षाएँ, विभागीय पुस्तकालय, दूरस्थशिक्षण केन्द्र, नाट्यशास्त्र अनुसन्धान केन्द्र, सभाकक्ष और सर्वसाधन सम्पन्न सभागार, शोधकक्ष सुव्यवस्थित रूप में उपलब्ध हैं। इनके साथ ही परिसर में व्यवस्थित वररुचि ग्रन्थागार (केन्द्रीय पुस्तकालय) और दृश्य साधन सम्पन्न वातानुकूलित भवभूति प्रेक्षागार भी उपलब्ध है। उसमें अतिथिनिवासकक्ष, शिक्षककक्ष और विभागाध्यक्ष कक्ष आदि नियमानुसार प्रकल्पित हैं।
इस के अतिरिक्त आवासीय सुविधा उपलब्ध कराने के लिए 333 छात्रों का पुरुष छात्रावास, 108 छात्राओं का महिला छात्रावास, अतिथि निवास, प्राचार्य एवं कर्मचारी आवासों के निर्माण का कार्य हो गया है। परिसर में वर्तमान मं् साहित्य, व्याकरण, ज्योतिष, शिक्षा, जैन दर्शन तथा आधुनिक विभाग सञ्चालित हैं। साथ ही वेद, पुराण इतिहास, सांख्य योग इत्यादि विभागों की स्वीकृति परिसर के समीप उपलब्ध है। प्राकशास्त्री, शास्त्री, आचार्य, शिक्षाशास्त्री (B.Ed.), शिक्षाचार्य (M.Ed.) तथा विद्यावारिधि पाठ्यक्रम परिसर में गुणवत्तापूर्ण पद्धति से सञ्चालित किए जा रहे हैं। साथ ही अनौपचारिक संस्कृत शिक्षण, वास्तु, ज्योतिष के प्रमाणपतरीय एवं पत्रोपधि पाठ्यक्रमों के साथ मुक्त स्वाध्याय पीठ में दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से भी पाठ्यक्रम सञ्चालित हो रहे हैं। इस प्रकार यह परिसर संस्कृत शिक्षा के विकास हेतु निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति में अग्रसर है।
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